अध्याय एक - भाग 4
अनंत और अविचल
(स्टैटिक) ब्रह्मांड के विरोध में एक और बात जाती है जिसका श्रेय जर्मन दार्शनिक
हाइनरिक ओलबर्स को दिया जाता है और जिन्होंने इसके बारे में सन 1823 में लिखा था.
दरअसल न्यूटन के कई समकालीन लोगों ने भी यह बात उठाई थी और ओलबर्स का लेख इसके
विरोध में लिखा जाने वाला पहला लेख भी नहीं था. हालांकि यह पहला ऐसा लेख था जिस पर
कई लोगों का ध्यान गया. समस्या यह है कि किसी अनंत और अविचल ब्रह्मांड में आप जिस
ओर भी देखेंगे आपकी नज़र किसी तारे पर पड़ेगी. इसका मतलब यह हुआ कि हमारा सारा
आकाश, चाहे दिन हो या रात, प्रकाशित रहना चाहिए. ओलबर्स का कहना था कि दूर के
तारों से आता हुआ प्रकाश बीच के पदार्थ (मैटर) के द्वारा अवशोषित कर लिए जाने के
कारण कम होता जाता है. लेकिन, यदि ऐसा हुआ, तो यह पदार्थ भी गर्म होता जाएगा और
आख़िरकार गर्म हो कर हमारे सूर्य की तरह चमकने लगेगा. तो इस निष्कर्ष से बचने का
एक ही रास्ता था (कि हमारा संपूर्ण आकाश हमेशा चमकता दिखना चाहिए) और वह यह था कि
यह माना जाए कि तारे हमेशा से ही चमक नहीं रहे हैं और एक समय ऐसा भी था जब ये चमक
नहीं रहे थे. इसलिए बीच का पदार्थ अभी इतना गर्म नहीं हो पाया है कि वह चमकने लगे,
या फिर बहुत दूर स्थित तारों की रोशनी अब तक हम तक नहीं पहुंच पाई है. और इससे यह
सवाल उठ खड़ा होता है कि तब इन तारों ने किस वजह से चमकना शुरू कर दिया?
यह बात तो तय है कि
ब्रह्मांड की उत्पत्ति पर चर्चाएं इस सब के बहुत पहले से होती रही हैं. अनेक
शुरूआती खगोलशास्त्रियों और यहूदी / ईसाई / मुस्लिम संस्कृतियों के अनुसार तो
ब्रह्मांड की शुरूआत एक निश्चित समय पर हुई है और यह घटना बहुत पुरानी नहीं है.
ब्रह्मांड की इस प्रकार की शुरूआत का एक तर्क यह है कि ऐसा महसूस होता है कि
कोई-न-कोई “प्रथम कारण” तो रहा ही होगा जिसकी वजह से आज ब्रह्मांड का आस्तित्व है.
(ब्रह्मांड के भीतर तो आप प्रत्येक घटना को उससे पहले घटित किसी और घटना के कारण
उत्पन्न घटना बता सकते हैं, लेकिन ब्रह्मांड की उत्पत्ति की घटना को सिर्फ इसी तरह
बताया जा सकता है.) संत ऑगस्टीन ने अपनी पुस्तक दि सिटी ऑफ गॉड (ईश्वर की नगरी)
में इसके अलावा एक और तर्क विशद् किया है. उन्होंने बताया कि सभ्यता का विकास हो
रहा है और हम यह बता सकते हैं कि कोई काम किसने किया है या फिर कोई तकनीक किसने
खोजी है. इसलिए मानव, और साथ ही ब्रह्मांड भी, बहुत ज्यादा समय से आस्तित्व में नहीं
होने चाहिएं. संत ऑगस्टीन ने माना था कि बाइबल की बुक ऑफ जेनेसिस के अनुसार
ब्रह्मांड की जो रचना हुई है, वह लगभग 5,000 ईसा पूर्व हुई होगी. (यह बात दिलचस्प
है कि यह काल पिछले हिम युग की समाप्ति के बहुत बाद का नहीं है, जो कि
पुरातत्वविदों के अनुसार लगभग 10,000 ईसा पूर्व का रहा होगा, और जिसके बाद मानव
सभ्यता विकसित होनी शुरू हुई.)
अरस्तू और दूसरे
ग्रीक दार्शनिकों को इस तरह ब्रह्मंड की “रचना” की बात पसंद नहीं थी, क्योंकि
इसमें ईश्वरीय हस्तक्षेप की बहुत अधिक बातें थीं. इसलिए वे मानते थे कि मानव जाति
और उसका संसार हमेशा से ही आस्तित्व में रहा है. पुरातन काल में ऊपर दिए विकास के
तर्क (संत ऑगस्टीन) पर पहले ही विचार हो चुका था और उसके बारे में उनका उत्तर था
कि अनेकों बार बाढ़ या इसी तरह की अन्य प्राकृतिक आपदाएं आती हैं जो मानव सभ्यता
को फिर से शून्य पर ला खड़ा करती हैं.
इन प्रश्नों पर, कि
क्या ब्रह्मांड की शुरूआत समय के किसी बिंदु पर हुई थी और क्या इसकी स्थान (स्पेस)
में कोई सीमा रेखा है, दार्शनिक एमान्युएल कांट (Immanuel Kant) ने अपनी 1781 में लिखी महान (और बहुत ही क्लिष्ट) पुस्तक क्रिटीक ऑफ प्योर
रीज़न (तर्कशास्त्र की समालोचना) में कुछ बातें कही हैं. उन्होंने इन प्रश्नों को
एंटीनोमीज़ ऑफ रीज़न यानि तर्क का अंतर्विरोध कहा है क्योंकि उनका कहना है कि इस
बात को मानने के भी पर्याप्त आधार हैं कि ब्रह्मांड हमेशा से ही रहा है; और इस बात
को मानने के भी कि ब्रह्मांड की शुरूआत किसी समय हुई थी. “ब्रह्मांड का जन्म हुआ है”
इस बात को मानने का प्रमुख आधार यह है कि यदि ब्रह्मांड की शुरूआत नहीं हुई थी, तो
किसी भी घटना से पहले अनंत समय बीत चुका है, जो कांट को बेतुकी बात लगती थी. वहीं
दूसरी ओर, “ब्रह्मांड हमेशा से आस्तित्व में है” इसे मानने का प्रमुख आधार यह है
कि यदि ब्रह्मांड की शुरूआत किसी क्षण हुई थी, तो उससे पहले अनंत समय बीत चुका था,
ऐसे में ब्रह्मांड ठीक उसी क्षण पर क्यों शुरू हुआ – जबकि वह उससे पहले के अनंत
समय में कभी भी शुरू हो सकता था. दरअसल, कांट के दोनों पक्षों के तर्क एक ही बात
कहते हैं. दोनों ही पक्षों के उनके तर्क यह मान कर चलते हैं कि समय अनंत काल से
चला आ रहा है, चाहे ब्रह्मांड अनंत काल से चला आ रहा हो या नहीं. हम आगे देखेंगे
कि क्यों समय की अवधारणा का ब्रह्मांड की उत्पत्ति से पहले कोई मतलब ही नहीं था.
इस ओर पहली बार संत ऑगस्टीन ने ध्यान दिलाया था. जब उनसे पूछा गया: “ब्रह्मांड को
बनाने से पहले ईश्वर क्या कर रहे थे?” तब ऑगस्टीन ने यह नहीं कहा: “ईश्वर उन लोगों
के लिए नर्क की तैयारी में लगे हुए थे जो इस तरह के सवाल पूछते हैं.” इसके बजाय
उन्होंने कहा कि समय तो ईश्वर के निर्मित ब्रह्मांड का एक गुण (प्रॉपर्टी) है और
ब्रह्मांड के निर्माण से पहले समय था ही नहीं.
-- क्रमशः
-- क्रमशः
Comments
Post a Comment