अध्याय एक - भाग 5
जब अधिकतर लोग
अविचल (स्टैटिक) और अपरिवर्तनीय ब्रह्मांड में विश्वास करते थे, तब “ब्रह्मांड की
शुरूआत हुई थी या नहीं” इस प्रश्न को आध्यात्म या धर्म से संबंधित माना जाता था. जो
कुछ भी दृश्य ब्रह्मांड में था, उसे इस मत के अनुसार भी समझा जा सकता था कि
ब्रह्मांड हमेशा से आस्तित्व में रहा है, और इस मत से भी कि ब्रह्मांड की रचना
किसी निश्चित समय पर की गई थी और इसे इस तरह बनाया गया था कि देखने पर ऐसा लगे कि
यह हमेशा से आस्तित्व में है. लेकिन सन 1929 में एडविन हबल ने यह खोज की कि हम जिस
ओर भी निगाह डालें, हमें दूरस्थ आकाशगंगाएं हमसे और दूर जाती दिखाई देती हैं.
दूसरे शब्दों में, ब्रह्मांड फैल रहा है. इसका मतलब था कि ऐसा कोई समय ज़रूर रहा
होगा जब ये चीज़ें एक-दूसरे के पास रही होंगी. वास्तव में ऐसा भी लगता था कि दस या
बीस अरब साल पहले ये सारी चीज़ें एक ही जगह पर रही होंगी और इसलिए उस समय पर
ब्रह्मांड का घनत्व (डेन्सिटी) अनंत रहा होगा. इस खोज के बाद ब्रह्मांड की शुरूआत
का विषय आख़िरकार विज्ञान की परिधि में आ ही गया.
हबल के निरीक्षणों
से लगता था कि एक ऐसा भी समय था, जिसे अब बिग बैंग कहा जाता है, जब ब्रह्मांड
अतिशय सूक्ष्म और अतिशय घना था. ऐसी परिस्थितियों में विज्ञान के सभी नियम, और परिणामस्वरूप भविष्य का पूर्वानुमान लगाने की क्षमता भी, काम नहीं करते. यदि इस समय
से पहले भी कोई घटनाएं घटित हुई होंगी, तो उनका असर वर्तमान समय पर नहीं पड़ सकता.
उन घटनाओं को नज़रअंदाज़ किया जा सकता है क्योंकि उनका कोई महत्व नहीं है. ऐसा कहा
जा सकता है कि समय की शुरूआत बिग बैंग के साथ ही हुई, क्योंकि उससे पहले के समय को
परिभाषित ही नहीं किया जा सकता. यहां इस बात पर ज़ोर दिया जाना चाहिए कि समय की यह
शुरूआत इससे पहले सोची गई सारी शुरूआतों से बहुत अलग है. किसी अपरिवर्तनीय
ब्रह्मांड में समय की शुरूआत को किसी ऐसे जीव द्वारा बाहर से थोपा जाना चाहिए जो
ब्रह्मांड से परे हो – क्योंकि पहले से आस्तित्व लिए ब्रह्मांड में समय की शुरूआत
होने की कोई भौतिकीय ज़रूरत या वजह नहीं है. हम कल्पना कर सकते हैं कि ईश्वर ने
ब्रह्मांड की रचना भूतकाल में किसी भी क्षण की होगी. लेकिन दूसरी ओर, यदि
ब्रह्मांड फैल रहा है, तो उसके किसी समय पर शुरू होने के लिए भौतिकीय वजहें होनी
चाहिएं. हम यह भी कल्पना कर सकते हैं कि बिग बैंग के क्षण पर ही ईश्वर ने
ब्रह्मांड की रचना की थी, या हो सकता है उसके बाद भी की हो और उसे इस तरह बनाया हो
कि देखने पर हमें लगे कि बिग बैंग का क्षण था, लेकिन ऐसा सोचना बेमानी होगा कि ब्रह्मांड
की रचना बिग बैंग से पहले की गई होगी. एक फैलता हुआ ब्रह्मांड किसी रचनाकर्ता को
नकारता नहीं है, लेकिन वह इस बात की ओर ज़रूर निर्देश करता है कि उस रचयिता ने ऐसा
कब किया होगा!
ब्रह्मांड की
प्रकृति के बारे में बात करने और इसका कोई आदि या अंत है या नहीं इस पर चर्चा करने
के लिए भी हमें यह जान लेना ज़रूरी है कि “वैज्ञानिक थ्योरी” शब्द का क्या मतलब
है. मैं बहुत ही सरल शब्दों में बताना चाहूंगा कि थ्योरी एक मॉडल होती है जिसमें ब्रह्मांड
के, या उसके एक छोटे-से भाग के, बारे में कुछ नियम होते हैं और ये नियम उस मॉडल की
विभिन्न मापों (मेजरमेंट्स / क्वांटिटीज़) को हमारे प्रत्यक्ष अवलोकन के साथ
जोड़ते हैं. थ्योरी केवल हमारे दिमाग में होती है और इसकी और कोई वास्तविकता (रियालिटी
– इसका जो भी मतलब होता हो) नहीं होती. किसी भी थ्योरी को “अच्छी थ्योरी” कहलाने
के लिए दो शर्तें पूरी करनी होती हैं: उसे ऐसे किसी मॉडल के अनेक प्रकार के
अवलोकनों को सटीकता से समझाना होता है जिसमें बहुत ही कम स्वैच्छिक तत्व हों; और
उसे भविष्य में किए जाने वाले अवलोकनों के बारे में सटीक पूर्वानुमान करने होते
हैं. उदाहरण के लिए, अरस्तू की यह थ्योरी कि हर चीज़ चार तत्वों पृथ्वी, वायु,
अग्नि और जल से मिल कर बनी है, इतनी सरल तो थी कि उसे थ्योरी कहा जाए, पर इससे कोई
सटीक पूर्वानुमान नहीं लगाए जा सकते. दूसरी ओर, न्यूटन की गुरुत्वाकर्षण की थ्योरी
और भी सरल मॉडल पर आधारित थी, जिसमें हर पिंड एक दूसरे को एक ऐसे बल के द्वारा
आकर्षित करता था जो उन दोनों के द्रव्यमान (एक माप - मास) के समानुपाती था और उन
दोनों पिंडों के बीच की दूरी के वर्ग के व्युत्क्रमानुपाती था. इतनी सरलता के
बावजूद इस थ्योरी से सूर्य, चंद्र और ग्रहों की गति के बारे में काफी सटीकता से
पूर्वानुमान लगाए जा सकते थे.
-- क्रमशः
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