कोरा पन्ना
ये कोरा पन्ना कुछ कहता है
मुझसे,
कौन थे वे, जिन्होंने
मेरे अतीत के कोरे पन्नों पर
रंग भरने की हिमाकत की थी
और सफल भी हुए थे?
कौन हैं वे,
जो अब उन रंगों को
दूसरी ही नज़र से देखते हैं
शायद इसलिए कि
उनके पास भी उस वक्त
मौका था, और औज़ार भी
लेकिन वे न भर सके
उन कोरे पन्नों को
अपने मनचाहे रंगों से?
शायद मैं ऐसा कुछ खोजता हूं
जो मैं ही परिभाषित नहीं कर सकता,
क्या समझदार, बुद्धिमान कहलाने
के लिए?
या वास्तव में कुछ ऐसा है
जिसे पाने की चाह तो है,
पर न साधन हैं और न समझ इतनी
कि पक्के तौर पर कहूं
कि हां, यही है वह...
यही वह रंग है जो मुझे चाहिए
था
मेरा आसमान रंगने के लिए
तभी मुझे याद आती हैं
बच्चन साहब की पंक्तियां
"और है क्या ख़ास मुझमें,
जो कि अपने आप को साकार करना चाहता हूं,
ख़ास यह है, सब तरह की ख़ासियत से आज मैं इन्कार करना चाहता
हूं"
ये कुछ पंक्तियां हैं जो मैंने कल (7 सितंबर 2017 को) लिखी थीं. मुझे ख़ुद पता नहीं कि क्यों लिखी थीं. थोड़ी presentable लगीं तो इन्हें ब्लॉग पर पोस्ट कर रहा हूं.
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